पिता | Poetry by Nitin Bhavsar

पिता..

हिम्मत तो देखो उसकी 
तुमको आराम दिलाने की ..
हरकत तो देखो उसकी 
तुम्हे बाज़ार दिलाने की ..

खुद के लिए ढंग का फ़ोन नहीं 
करता मेहनत तुम्हें महंगा लैपटॉप दिलवाने की ..

दिनभर बाहर पसीना बहाता
सोचता हरपल तुम्हे बहार दिखाने की ..
वो तो खुश हैं कुछ कम में भी 
पर तुमको कहा परवाह उसके बलिदानों की ..

पिता.. बाबा.. अब्बा.. वो 
जानें कौन, क्या-क्या आप बीती है उसके पास बताने को..
खुद को झकझोर देता 
तुम्हे ऐशों आराम भरी ज़िंदगी बिताने को ..

ऐसी कई अनगिनत कहानियाँ है तुमको बतलाने को 
खुद ही सोचलों.. या फिर बतलाओ कब आऊं
मिलकर बैठकर समझाने को?

Regards,
Nitin Bhavsar

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